मैं जबलपुर वर्षों रहा। जबलपुर में इस जगत का, इस पृथ्वी का एक सुंदरतम स्थल है--भेड़ाघाट। मेरे हिसाब में शायद पृथ्वी पर इतनी सुंदर कोई दूसरी जगह नहीं है। दो मील तक नर्मदा संगमरमर की पहाड़ियों के बीच से बहती है। दोनों तरफ संगमरमर की पहाड़ियां हैं। एक तो संगमरमर की पहाड़ी...हजारों ताजमहल का सौंदर्य इकट्ठा! फिर बीच से नर्मदा का बहाव। बड़ा अपूर्व जगत है! मैं अपने एक वृद्ध प्रोफेसर को, जिन्होंने मुझे पढ़ाया था, दिखाने ले गया। वे आनंद से रोने लगे। बूढ़े हो गए थे। अब तो जा भी चुके दुनिया से। जब मैं उन्हें नाव में बिठाकर अंदर ले गया तो वह कहने लगे कि यह जो मैं देख रहा हूं, यह सच में है? क्योंकि मुझे लगता है सपना। नाव को, उन्होंने कहा कि किनारे लगाओ मांझी, मैं इन संगमरमर की पहाड़ियों को छूकर देखना चाहता हूं कि ये सच में हैं? पूर्णिमा की रात में इतना ही जादू हो जाता है।
भरोसा नहीं आता कि इस पृथ्वी पर इतना सौंदर्य हो सकता है! लेकिन जबलपुर में ऐसे हजारों लोग हैं, जो तेरह मील दूर भेड़ाघाट देखने नहीं गये। उनके घरों में मेहमान आते हैं जो भेड़ाघाट देखने के लिए आते हैं। मगर उनको खयाल नहीं आया कि देखने जाना है। इतने पास है, कभी भी देख लेंगे। जो पास होता है, उसे कभी भी देख लेंगे।