ओशो की कहानी , बचपन के दोस्त सुखराज की

जुबानी !

ओशो की कहानी , बचपन के दोस्त सुखराज की

जुबानी !

ओशो की कहानी , बचपन के दोस्त सुखराज की 

                                     जुबानी !

उनसे मेरी पहली मुलाकात स्कूल मे हुई थी , उनका दाखिला

सीधे कक्षा तीन मे हुआ था !

 

अरे भाई क्या आनंद भरे दिन थे जब वो बड़ी ~ बड़ी आँखो व 

घुंघराले बालो वाला लड़का , अपने चाचा के साथ आये , हाथ मे एक सुंदर सी स्लेट लिए पूरी कक्षा को सरसरी निगाह से देखने के बाद मेरे बगल मे आकर खड़े हो गए और मैं यंत्रवत

अपनी टाट से जगह बनाकर खिसक गया उन्हें बैठाने के लिए !

 

आते ही मुझसे बोले ; मेरा नाम ~ रजनीश चन्द्रमोहन है , और

तुम्हारा ,मैं बोला मेरा नाम सुखराज है ।

तुरंत ही चाक से हाथी , घोड़ा वगैरह बनाकर दिखाने लगे , मैं तो दंग रह गया साब् जी कि आज ही आया और इतनी प्रतिभा,

अब तो मुझे नया यार मिल गया मैं बहुत खुश था !

लंच होने पर हम साथ ही खाते थे , और एक झाड़ के नीचे मैं बैठ जाता था और वो मेरी गोद मे सिर रखकर कहानियां सुनते थे ।

उस समय मुझे क्या मालूम कि भगवान खुद मेरी गोद मे लेटे है।

 

समय गुजरा जब वो संबोधि को उपलब्ध हुए , तब भी मैं उनकी परछाई की तरह उनके साथ लगा रहता था , कई बार विदेश जाने का सौभाग्य भी मिला उनके साथ । 

पूना का आश्रम बन गया था और वो पूना चले गए ।

बात आयी ~ गयी हो मैं नर्मदा नदी के किनारे जंगलो मे अपना मकान बनवाकर लकड़ी के ब्यवसाय मे लग गया , मेरा ब्यवसाय अपनी चरम पे था , बड़े ~ बड़े टेंडर मिलने लगे मुझको मैं खुश था !

तभी एक दिन अचानक उनकी कार मेरे कॉटेज के सामने आकर रुकी, उस वक्त मैं शराब पीरहा था , उन्हें देखते ही शराब की बोतल और गिलास दोनो मेरे हाथ से गिर गए , मैं आप से सच कहता हु , उन्होंने कभी भी मुझे नही मना किया कि तू ये क्या कर रहा है  

 

आते ही वही चिर~ परचित अंदाज मे बोले ~ कैसे हो सुखराज ? मेरे खुशी का ठिकाना नही था , वो मुझे सीने से लगा लिए ; 

मैं अपनी सोहन से बोला कि बढ़िया ब्यंजन बनाओ ,मेरे बचपन का यार आया है , तभी उनके P.A.ने बोला ; भगवान दो साल से संतरे का जूस और दलिया ही लेते है , पर वो बोले ~ तू बना आज मैं सब खाउगा ! 

रात मे भोजन टेबल पर जो कुछ भी पकवान बने थे सब मुझे खिलाकर अपना सिर्फ जूस व दलिया ही लिए और कहते रहे सुखराज कितना अच्छा बना है मैं यंत्रवत उनके हाथ से खाता रहा ।

उस रात बड़ी ही उमस भरी गर्मी थी , बाहर ही उनका बिस्तर लगा के आकाश की ओर देखकर बोला कि मेरे बचपन का यार आया है तू थोड़ा मौसम ठंढा कर दे , आश्चर्य नीचे के भगवान से यारी क्या हुई ऊपर वाला भी मेरी बात मानने लगा , की ठंढी

बयार चलने लगी आधी रात के बाद ठंढ सी महसूस होने लगी

वो मेरी तरफ पीठ करके सोये थे मैं धीरे से चद्दर लेकर उन्हें ओढ़ाने वाला था की वो बोले रहने दे सुखराज मैं ठीक हूँ ,

मैं बोला भगवान आप जाग रहे है , वो बोले नही सुखराज मैं सो गया हूँ ! इसका अर्थ बाद मे मालूम हुआ !

सुबह जब वो जाने लगे तो बोले सुखराज ~ पूना कब आ रहा है , मैंने यू ही कह दिया कुछ दिन बाद ये काम निपटा कर ,

तभी सोहन बोली भगवान अभी जितना काम लिए है ये तीन वर्ष के पहले निपटने वाले नही !

तब भगवान बोले ~ सुखराज इट इज आल राइट बट नाट ए जिनियन वर्क ।

 

उनके जाने के पीछे भयानक तबाही का मंजर , भयंकर बाढ़ ने मेरा सबकुछ आठ ट्रक वगैरह लील लिया ।

नर्मदा का पानी ने सभी रिकार्ड तोड़ दिए , बढ़ते ~ बढ़ते वहाँ तक आई जहा भगवान ने अपनी खड़ाऊ उतारे थे !

हम भले न समझ पाये पर नर्मदा बुद्धपुरुष के चरण ~ रज लेंकर वही से सिकुड़ना शुरू कर दिया ! 

मैं सोहन से बोला अब क्या करे अपुन ; सोहन बोली ~करना क्या ? लोगो को पूरी ~ हलुआ खिला कर हम भी पूना चलते है

मैं जोर से हँसा बोला तुम ठीक कहती हो !

तब मैंने जाना भगवान अपने बचपन के यार से यारी निभाने आये थे ।


tarkeshwar Singh

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