80 साल की उम्र के #राजा_छत्रसाल जब मुगलो से घिर गए,और बाकी राजपूत राजाओं से कोई उम्मीद ना थी तो उम्मीद का एक मात्र उम्मीद की किरण थी
"बाजीराव पेशवा"।
राजा छत्रसाल ने पत्र लिखा....
"जो गति ग्राह गजेंद्र की सो गति भई है आज!
बाजी जात बुन्देल की बाजी राखो लाज!"
( जिस प्रकार गजेंद्र हाथी मगरमच्छ के जबड़ो में फंस गया था ठीक वही स्थिति मेरी है, आज बुन्देल हार रहा है , बाजी हमारी लाज रखो)
पत्र पढ़ते ही बाजीराव खाना छोड़कर उठे उनकी पत्नी ने पूछा खाना तो खा लीजिए तब बाजीराव ने कहा...
"अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक #क्षत्रिय ने #मदद मांगी और #ब्राह्मण भोजन करता रहा "
ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर #बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा #छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े । दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके !!!
ब्राह्मण योद्धा बाजीराव बुंदेलखंड आए और मोहम्मद बंगश खान की गर्दन काट कर जब क्षत्रिय राजा छत्रसाल के सामने गए तो छत्रसाल से बाजीराव को गले लगाते हुए कहा:-
"जग उपजे दो ब्राह्मण: परशु ओर बाजीराव।
एक डाहि क्षत्रिय, एक डाहि तुरकाव।।"